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"बधाई हो दामाद जी, लक्ष्मी के आगमन की.... देखना अब घर में ख़ुशियाँ बरसेंगी!... धन-धान्य की कभी कमी नहीं होवेगी!... मेरी तरफ से शुभा और नन्हीं परी को बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद!..जुग-जुग जीयें दोनों!!
.... हाँ-हाँ... ये भी कोई कहने की बात है, हम लोग छट्ठी में एक दिन पहले ही पहुँच जावेंगे...आप चिन्ता न करो, सब व्यवस्था हो जावेगी, कोई कसर न रहेगी...आप तो बस शुभा और मेरी नन्हीं परी का खूब ध्यान रखो, बस!"
दादी ने जैसे ही फोन रखा, देर से उन्हें एकटक निहार रही आस्था उनसे आतुरता से पूछने लगी, "दादी जी! लक्ष्मी जी तो दिवाली की रात को पूजा के बाद आती हैं न, सबके घरों में धन बरसाने!... अभी इतने दिनों पहले कौन सी लक्ष्मी आ गयीं?.... और कहाँ??"
"अरी लाड़ो! तेरी रानो बूआ के घर असली लक्ष्मी आ गयी है आज... मतलब तेरी छोटी सी, प्यारी सी बहन।" हर्षातिरेक में दादी ने आज तो उसे गोद में ही बिठा लिया था।
"लेकिन मेरी बहन तो निष्ठा है! और लक्ष्मीजी बहन कैसे हो सकती हैं?" "अरी बुद्धू, जरा भी बात नहीं समझती!...तेरी बूआ के घर लक्ष्मी आयी है मतलब उसे बेटी हुई है आज!"
"अच्छा!... बेटी मतलब लक्ष्मी होती है क्या दादी जी?"
"हाँ, और नहीं तो क्या!...देखना अब तेरी बूआ के घर किसी चीज की कोई कमी नहीं रहेगी, इतना धन आयेगा... तेरे फूफा खूब कमायेंगे!" हुलसती हुई दादी कह रही थीं।
"दादी जी! मैं भी तो मम्मा-पापा की बेटी हूँ... मतलब, मैं भी लक्ष्मी हूँ ना?... और निष्ठा भी लक्ष्मी है ना??... दो-दो बेटी यानी डबल लक्ष्मी... है ना!... तभी हमारे घर में दो गुना धन आया है!.... फिर आप मम्मा को कोसती क्यों रहती हैं... कि दो-दो बेटियों की लाइन लगा दी...इनके पीछे जनम भर की कमाई लुट जावेगी??"
नीलम सौरभ
(स्वरचित, मौलिक)
.... हाँ-हाँ... ये भी कोई कहने की बात है, हम लोग छट्ठी में एक दिन पहले ही पहुँच जावेंगे...आप चिन्ता न करो, सब व्यवस्था हो जावेगी, कोई कसर न रहेगी...आप तो बस शुभा और मेरी नन्हीं परी का खूब ध्यान रखो, बस!"
दादी ने जैसे ही फोन रखा, देर से उन्हें एकटक निहार रही आस्था उनसे आतुरता से पूछने लगी, "दादी जी! लक्ष्मी जी तो दिवाली की रात को पूजा के बाद आती हैं न, सबके घरों में धन बरसाने!... अभी इतने दिनों पहले कौन सी लक्ष्मी आ गयीं?.... और कहाँ??"
"अरी लाड़ो! तेरी रानो बूआ के घर असली लक्ष्मी आ गयी है आज... मतलब तेरी छोटी सी, प्यारी सी बहन।" हर्षातिरेक में दादी ने आज तो उसे गोद में ही बिठा लिया था।
"लेकिन मेरी बहन तो निष्ठा है! और लक्ष्मीजी बहन कैसे हो सकती हैं?" "अरी बुद्धू, जरा भी बात नहीं समझती!...तेरी बूआ के घर लक्ष्मी आयी है मतलब उसे बेटी हुई है आज!"
"अच्छा!... बेटी मतलब लक्ष्मी होती है क्या दादी जी?"
"हाँ, और नहीं तो क्या!...देखना अब तेरी बूआ के घर किसी चीज की कोई कमी नहीं रहेगी, इतना धन आयेगा... तेरे फूफा खूब कमायेंगे!" हुलसती हुई दादी कह रही थीं।
"दादी जी! मैं भी तो मम्मा-पापा की बेटी हूँ... मतलब, मैं भी लक्ष्मी हूँ ना?... और निष्ठा भी लक्ष्मी है ना??... दो-दो बेटी यानी डबल लक्ष्मी... है ना!... तभी हमारे घर में दो गुना धन आया है!.... फिर आप मम्मा को कोसती क्यों रहती हैं... कि दो-दो बेटियों की लाइन लगा दी...इनके पीछे जनम भर की कमाई लुट जावेगी??"
नीलम सौरभ
(स्वरचित, मौलिक)
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