"मम्मी जी!. आजकल सुनैना काकी हमारे घर नहीं आती है,.ऐसा क्यों?"
उस घर की इकलौती बहू राधिका ने आज हिम्मत कर अपनी सास से पूछ लिया और अपनी बहू की बात सुनकर प्रभाजी अचानक चिढ़ गई..
"वह ना ही आए तो भला!"
सुनैना काकी के प्रति अपनी सास की कुढ़न देख राधिका के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई..
"क्यों मम्मी जी?. कोई बात हुई है क्या?"
"तुझे तो पता ही है बहू कि,. वह हर दिन कुछ ना कुछ मांगने के बहाने आ जाती थी हमारे घर ताक-झांक करने इसलिए मैंने उन्हें कह दिया है कि रोज-रोज उन्हें हमारे घर आने की कोई जरूरत नहीं है।"
"उन्हें तो बहुत बुरा लगा होगा ना मम्मी जी!"
"बुरा लगा होगा तो मेरी बला से!.लेकिन भला हुआ कि दो दिनों से वह हमारे दरवाजे पर मुंह उठाकर आई नहीं है।"
"लेकिन फिर भी मम्मी जी!"
"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं!. मैंने जो किया वो सही किया।"
अपनी सास की बात सुनकर राधिका चुप हो गई लेकिन प्रभाजी बड़बड़ाती रही..
"बहू तूं नहीं जानती!.एक कटोरी चीनी और आए दिन जामन मांगने के बहाने घर-घर जाकर पड़ोसियों की टोह लेने का काम गांँव के गंवार लोग ही करते हैं!. शहर में कोई ऐसी छिछोरी हरकत नहीं करता।"
राधिका चुपचाप सुनती रही और प्रभा जी अपने दिल की भड़ास उसके सामने निकालती रही..
"वैसे भी अगले महीने रजत तुझे ले जाएगा शहर तब खुद ही देख लेना!.वहां सभी अपने अपने काम से मतलब रखते हैं कोई कुछ मांगने के बहाने किसी के घर जाकर अपने पड़ोसियों की खबर नहीं लेता।"
"हांँ मम्मी जी!. आप सही कह रही हैं,. रजत भी कह रहे थे कि वहां शहर में कोई किसी की खबर नहीं रखता,. इतना ही नहीं मम्मी जी,.किसके पड़ोस में कौन रहता है वहां तो यह भी किसी को पता नहीं होता।"
"अच्छा!.यह तो बड़ी अजीब बात है!"
प्रभा जी को आश्चर्य हुआ लेकिन राधिका आगे बताने लगी..
"पता है मम्मी जी!. रजत बता रहे थे कि जिस सोसाइटी में उन्होंने किराए का फ्लैट ले रखा है वहां पड़ोस के एक फ्लैट में एक बूढ़ी औरत साल भर पहले मर गई थी लेकिन किसी पड़ोसी ने सुधि नहीं ली!.और जब उसका बेटा कई महीनों के बाद उससे मिलने आया तो उसे अपनी मांँ की लाश के दर्शन भी नहीं हुए,. मात्र कंकाल ही बचा था।"
"यह क्या कह रही हो बहू!"
प्रभा जी को तो मानो विश्वास ही नहीं हुआ।
"जी मम्मी जी!. यह बात रजत बता रहे थे।"
राधिका अपनी सास प्रभा जी को सच्चाई से अवगत करा रही थी लेकिन शहर में रहने वाले अपने बेटे रजत द्वारा बताई गई और राधिका द्वारा सुनाई गई खबर से प्रभा जी का दिल बैठा जा रहा था,.
"कैसे निष्ठुर लोग रहते हैं शहर में!. जो पड़ोस में रहने वालों की खोज खबर तक नहीं रखते।"
"लेकिन मम्मी जी आजकल लोग खुद भी तो नहीं चाहते ना कि,. कोई पड़ोसी रोज उनके घर आकर ताक-झांक कर उनकी खोज खबर ले।"
पड़ोस में रहने वाली सुनैना काकी के रोज अपने घर आने पर आपत्ति जताने वाली प्रभा जी अपनी बहू की बात सुनकर चुप हो गई,.कुछ कह ना सकी लेकिन तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक सी हुई।
शायद कोई आया था!. प्रभा जी शून्य में डूबी खड़ी रही लेकिन उनकी बहू राधिका ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया।
सामने सुनैना काकी खड़ी थी..
"प्रभा बहन!. लो हम फिर आ गए।"
अपने शब्दों के मिठास संग सुनैना काकी अपने हाथ में एक छोटी सी कटोरी लिए शायद चीनी मांगने के बहाने अपनी पड़ोसन प्रभा जी की खोज खबर लेने आई थी। सुनैना काकी से नजरें मिलते ही प्रभा जी का गला रूंध गया और वह आगे बढ़कर सुनैना काकी के गले लग गई..
"मुझे माफ कर दो सुनैना बहन!.मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है।"
पूर्व में सास-बहू के बीच हुई बातों से अनभिज्ञ सुनैना काकी प्रभा जी का यह रूप देख हैरान थी लेकिन दोनों सखियों का पुनर्मिलन देख राधिका मुस्कुरा रही थी।
पुष्पा कुमारी "पुष्प"
पुणे (महाराष्ट्र)
उस घर की इकलौती बहू राधिका ने आज हिम्मत कर अपनी सास से पूछ लिया और अपनी बहू की बात सुनकर प्रभाजी अचानक चिढ़ गई..
"वह ना ही आए तो भला!"
सुनैना काकी के प्रति अपनी सास की कुढ़न देख राधिका के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई..
"क्यों मम्मी जी?. कोई बात हुई है क्या?"
"तुझे तो पता ही है बहू कि,. वह हर दिन कुछ ना कुछ मांगने के बहाने आ जाती थी हमारे घर ताक-झांक करने इसलिए मैंने उन्हें कह दिया है कि रोज-रोज उन्हें हमारे घर आने की कोई जरूरत नहीं है।"
"उन्हें तो बहुत बुरा लगा होगा ना मम्मी जी!"
"बुरा लगा होगा तो मेरी बला से!.लेकिन भला हुआ कि दो दिनों से वह हमारे दरवाजे पर मुंह उठाकर आई नहीं है।"
"लेकिन फिर भी मम्मी जी!"
"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं!. मैंने जो किया वो सही किया।"
अपनी सास की बात सुनकर राधिका चुप हो गई लेकिन प्रभाजी बड़बड़ाती रही..
"बहू तूं नहीं जानती!.एक कटोरी चीनी और आए दिन जामन मांगने के बहाने घर-घर जाकर पड़ोसियों की टोह लेने का काम गांँव के गंवार लोग ही करते हैं!. शहर में कोई ऐसी छिछोरी हरकत नहीं करता।"
राधिका चुपचाप सुनती रही और प्रभा जी अपने दिल की भड़ास उसके सामने निकालती रही..
"वैसे भी अगले महीने रजत तुझे ले जाएगा शहर तब खुद ही देख लेना!.वहां सभी अपने अपने काम से मतलब रखते हैं कोई कुछ मांगने के बहाने किसी के घर जाकर अपने पड़ोसियों की खबर नहीं लेता।"
"हांँ मम्मी जी!. आप सही कह रही हैं,. रजत भी कह रहे थे कि वहां शहर में कोई किसी की खबर नहीं रखता,. इतना ही नहीं मम्मी जी,.किसके पड़ोस में कौन रहता है वहां तो यह भी किसी को पता नहीं होता।"
"अच्छा!.यह तो बड़ी अजीब बात है!"
प्रभा जी को आश्चर्य हुआ लेकिन राधिका आगे बताने लगी..
"पता है मम्मी जी!. रजत बता रहे थे कि जिस सोसाइटी में उन्होंने किराए का फ्लैट ले रखा है वहां पड़ोस के एक फ्लैट में एक बूढ़ी औरत साल भर पहले मर गई थी लेकिन किसी पड़ोसी ने सुधि नहीं ली!.और जब उसका बेटा कई महीनों के बाद उससे मिलने आया तो उसे अपनी मांँ की लाश के दर्शन भी नहीं हुए,. मात्र कंकाल ही बचा था।"
"यह क्या कह रही हो बहू!"
प्रभा जी को तो मानो विश्वास ही नहीं हुआ।
"जी मम्मी जी!. यह बात रजत बता रहे थे।"
राधिका अपनी सास प्रभा जी को सच्चाई से अवगत करा रही थी लेकिन शहर में रहने वाले अपने बेटे रजत द्वारा बताई गई और राधिका द्वारा सुनाई गई खबर से प्रभा जी का दिल बैठा जा रहा था,.
"कैसे निष्ठुर लोग रहते हैं शहर में!. जो पड़ोस में रहने वालों की खोज खबर तक नहीं रखते।"
"लेकिन मम्मी जी आजकल लोग खुद भी तो नहीं चाहते ना कि,. कोई पड़ोसी रोज उनके घर आकर ताक-झांक कर उनकी खोज खबर ले।"
पड़ोस में रहने वाली सुनैना काकी के रोज अपने घर आने पर आपत्ति जताने वाली प्रभा जी अपनी बहू की बात सुनकर चुप हो गई,.कुछ कह ना सकी लेकिन तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक सी हुई।
शायद कोई आया था!. प्रभा जी शून्य में डूबी खड़ी रही लेकिन उनकी बहू राधिका ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया।
सामने सुनैना काकी खड़ी थी..
"प्रभा बहन!. लो हम फिर आ गए।"
अपने शब्दों के मिठास संग सुनैना काकी अपने हाथ में एक छोटी सी कटोरी लिए शायद चीनी मांगने के बहाने अपनी पड़ोसन प्रभा जी की खोज खबर लेने आई थी। सुनैना काकी से नजरें मिलते ही प्रभा जी का गला रूंध गया और वह आगे बढ़कर सुनैना काकी के गले लग गई..
"मुझे माफ कर दो सुनैना बहन!.मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है।"
पूर्व में सास-बहू के बीच हुई बातों से अनभिज्ञ सुनैना काकी प्रभा जी का यह रूप देख हैरान थी लेकिन दोनों सखियों का पुनर्मिलन देख राधिका मुस्कुरा रही थी।
पुष्पा कुमारी "पुष्प"
पुणे (महाराष्ट्र)
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