"प्रेम का अवसान".....
बहुत प्रेम था दोनों में...लड़की नदी सी शोख... प्रवाह मान...
इठलाती...बलखाती...सुंदर सपनों की दुनिया में खोई--खोई सी...कब आयेगा सफेद घोड़े पर सवार वह राजकुमार... जो ले जायेगा उस दुनिया के पार... जहाँ हो प्रेम की भरमार...
फिर मिला सुंदर...सजीला एक नौजवान...जो बजाता था इतनी मीठी तान कि लगता था कि साक्षात कृष्ण ही बजा रहे हैं।
लड़की खो गई बांसुरी की तान मे...
सजीला नौजवान बह गया कजरारे नयनों के उफान में....
बीच में थी जाति की दीवार... पर थे दोनों सबसे बेपरवाह...नतीजा ...सारी दुनिया से लड़--झगड़कर चल पड़े
एक वह घर बनाने जहाँ सिर्फ वे दोनों हो...मीठी बांसुरी की तान हो...प्रेम ही प्रेम हो...प्रेम का स्वर्ग हो और कहीं कुछ भी न हो...
पर हाय... इस पेट की आग ने जमीन पर पटक ही दिया...प्रेम से पेट भरता ही नहीं... दिल की छत बारिश और धूप से बचाती नहीं थी...अब लड़के के हाथों में मजूरी थी... लड़की चूल्हा फूंक रही
थी...दोनों के प्रेम की प्रतीक वह बांसुरी परछत्ती पर उपेक्षित पड़ी थी और घर में नून...तेल...लकड़ी की ही गूँज थी।
लड़की असहाय थी...लड़का निराश था। सालों से घर ने सुनी नहीं बांसुरी की तान थी। अब तानों का शोर था। जिंदगी का नर्क था। धीरे--धीरे गृहस्थी भी जुड़ने लगी।
बच्चों के शोर से घर भरने लगा...
पर वह बांसुरी परछत्ती पर अवशेष बन कर पड़ी ही रह गई।
लड़की उसे देखती...भर-भर आंखें रोती...एक दिन लड़की ने आंखों में आंसू भरकर...
उसे तोड़ चूल्हे में झोंक दिया।
यह उस " प्रेम का अवसान " था।
साधना मिश्रा समिश्रा
स्वरचित,सुरक्षित
दिनांक-१७-११-२०२१
बहुत प्रेम था दोनों में...लड़की नदी सी शोख... प्रवाह मान...
इठलाती...बलखाती...सुंदर सपनों की दुनिया में खोई--खोई सी...कब आयेगा सफेद घोड़े पर सवार वह राजकुमार... जो ले जायेगा उस दुनिया के पार... जहाँ हो प्रेम की भरमार...
फिर मिला सुंदर...सजीला एक नौजवान...जो बजाता था इतनी मीठी तान कि लगता था कि साक्षात कृष्ण ही बजा रहे हैं।
लड़की खो गई बांसुरी की तान मे...
सजीला नौजवान बह गया कजरारे नयनों के उफान में....
बीच में थी जाति की दीवार... पर थे दोनों सबसे बेपरवाह...नतीजा ...सारी दुनिया से लड़--झगड़कर चल पड़े
एक वह घर बनाने जहाँ सिर्फ वे दोनों हो...मीठी बांसुरी की तान हो...प्रेम ही प्रेम हो...प्रेम का स्वर्ग हो और कहीं कुछ भी न हो...
पर हाय... इस पेट की आग ने जमीन पर पटक ही दिया...प्रेम से पेट भरता ही नहीं... दिल की छत बारिश और धूप से बचाती नहीं थी...अब लड़के के हाथों में मजूरी थी... लड़की चूल्हा फूंक रही
थी...दोनों के प्रेम की प्रतीक वह बांसुरी परछत्ती पर उपेक्षित पड़ी थी और घर में नून...तेल...लकड़ी की ही गूँज थी।
लड़की असहाय थी...लड़का निराश था। सालों से घर ने सुनी नहीं बांसुरी की तान थी। अब तानों का शोर था। जिंदगी का नर्क था। धीरे--धीरे गृहस्थी भी जुड़ने लगी।
बच्चों के शोर से घर भरने लगा...
पर वह बांसुरी परछत्ती पर अवशेष बन कर पड़ी ही रह गई।
लड़की उसे देखती...भर-भर आंखें रोती...एक दिन लड़की ने आंखों में आंसू भरकर...
उसे तोड़ चूल्हे में झोंक दिया।
यह उस " प्रेम का अवसान " था।
साधना मिश्रा समिश्रा
स्वरचित,सुरक्षित
दिनांक-१७-११-२०२१
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