
दुनिया में दो तरह की महिलाएं होती है, एक वो जो अपने ऊपर हो रहे जुल्म को नियति मानकर बैठ जाती है तथा बाकी की बची जिंदगी उसी के काले साए तले सिसकते हुए गुजार देती है और दूसरी वो जो सितम को सहती है, परिस्थितियों से जूझती हुई आगे बढ़ती है और विपत्ति काल में भी दूसरों के लिए मदद का हाथ बढ़ाते हुए दुनिया में एक मिसाल कायम करती है।
आज हम बात कर रहे हैं पद्म श्री की उपाधि से अलंकृत महाराष्ट्र की मदर टेरेसा, सिन्धुताई सपकाल के बारे में, जिन्हें बचपन में लैंगिक भेदभाव के चलते चिंधी (कपड़े का फटा टुकड़ा) कहकर बुलाया जाता था। महज चौथी कक्षा तक पढ़ी सिंधुताई की शादी दस बरस की उम्र में एक तीस साल की उम्र वाले व्यक्ति से कर दी गई थी। बीस साल की उम्र होते होते सिंधु ताई तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। एक दफा जब गांव का मुखिया, गांववालों को उनके हक की मजदूरी देने में आनाकानी कर रहा था तो सिंधुताई ने उसकी सिकायत जिला अधिकारियों से कर दी। इस घटना से अपमानित महसूस करते हुए मुखिया ने इस अपमान का बदला लेने के लिए सिंधुताई के पतिपर दबाव बनाते हुए अपनी बीवी को घर से बाहर निकालने के लिए उकसाया, जिसके बाद श्रीहरि (सिंधुताई के पति) ने अपनी बीवी पर अवैध यौन संबंधों का आरोप लगाकर उसे पिटते हुए घर से बाहर निकाल दिया।
उस वक्त सिंधुताई नौ महीने की गर्भवती थी। जिस रात वो घर से निकली गई, उसी रात उन्होंने एक गाय के तबेले में एक बेटी को जन्म दिया, जिसका गर्भनाल उन्होंने खुद अपने हाथों से पत्थर मार मारकर काटा था। इतना कष्ट झेलने के बाद कोई महिला कभी टूट नहीं सकती है, उसे तो अब बस खरे सोने की तरह चमकना है।
नवजात शिशु को गोद में लेकर जब सिंधुताई अपने मायके गई तो उनकी मां ने पिता की मृत्यु का हवाला देते हुए वहां शरण देने से इंकार कर दिया। कोई और उपाय ना देखकर सिंधुताई नवजात को सीने से लगाए रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर अपना पेट भरने लगी।
हालातों के आगे मजबूर होकर उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को उचित लालन पालन हेतु एक मंदिर में छोड़ दिया। इसके कुछ दिनों बाद रेलवे स्टेशन पर पड़े एक बच्चे को पर तरस खाते हुए उन्होंने उसे गोद ले लिया। जिसके बाद उनके मन में उन हजारों अनाथ बच्चों के बारे में ख्याल आया कि उनका क्या होगा। स्टेशन पर भीख मांगते हुए सिंधु उन बच्चों के लिए खाने का इंताजाम करने लगी, इस तरह से वो हजारों बच्चों के पेट भरने का साधन बन चुकीं थी। वो अबतक करीब 1500 अनाथ बच्चों को गोद लेते हुए, उन्हें नया जीवन दे चुकी हैं जिनमें से कई आज डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, आदि हैं।
हम सिंधु ताई के जज्बे को तहे दिल सलाम करते हैं, जय हो ??
नवजात शिशु को गोद में लेकर जब सिंधुताई अपने मायके गई तो उनकी मां ने पिता की मृत्यु का हवाला देते हुए वहां शरण देने से इंकार कर दिया। कोई और उपाय ना देखकर सिंधुताई नवजात को सीने से लगाए रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर अपना पेट भरने लगी।
हालातों के आगे मजबूर होकर उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को उचित लालन पालन हेतु एक मंदिर में छोड़ दिया। इसके कुछ दिनों बाद रेलवे स्टेशन पर पड़े एक बच्चे को पर तरस खाते हुए उन्होंने उसे गोद ले लिया। जिसके बाद उनके मन में उन हजारों अनाथ बच्चों के बारे में ख्याल आया कि उनका क्या होगा। स्टेशन पर भीख मांगते हुए सिंधु उन बच्चों के लिए खाने का इंताजाम करने लगी, इस तरह से वो हजारों बच्चों के पेट भरने का साधन बन चुकीं थी। वो अबतक करीब 1500 अनाथ बच्चों को गोद लेते हुए, उन्हें नया जीवन दे चुकी हैं जिनमें से कई आज डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, आदि हैं।
हम सिंधु ताई के जज्बे को तहे दिल सलाम करते हैं, जय हो ??
Social Media | |
Telegram | Join |
Join | |
Youtube | |
Faceboook | Like |
Follow |
Comment